विज्ञान अनसोल्व पेपर 2021
Science Unsolved Paper 2021
Set 1 (824 HX)
खण्ड-क
1. (क) जब श्वेत प्रकाश एक प्रिज्म पर आपतित होता है, तो किस रंग का विचलन अधिकतम हो है?
(i) लाल
(ii) हरा
(iii) पीला
(iv) बैंगनी
उत्तर (iv) बैंगनी
(ख) एक दर्पण की वक्रता त्रिज्या 40 सेमी है। उसकी फोकस दूरी होगी
(i) 20 सेमी
(ii) 40 सेमी
(iii) 80 सेमी
(iv) 160 सेमी
उत्तर (i) 20 सेमी
(ग) बिजली के बल्ब का फिलामेंट बना होता हैं
(i) ताँबे का
(ii) टंगस्टन का
(iii) नाइक्रोम का
(iv) एल्यूमीनियम का
उत्तर (ii) टंगस्टन का
(घ) चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर कार्यकारी बल की दिशा ज्ञात करने के लिए नियम है।
(i) ओम का नियम
(ii) लेंज का नियम
(iii) फ्लेमिंग के दायें हाथ का नियम
(iv) फ्लेमिंग के बायें हाथ का नियम
उत्तर (iv) फ्लेमिंग के बायें हाथ का नियम
2. (क) प्रिज्म द्वारा अपवर्तन को समझाइये।
उत्तर.
ABC एक प्रिज्म है। एक किरण PQ तल AB से अपवर्तित होकर QR दिशा में चली जाती है। यह किरण अब प्रिज्म के दूसरे तल AC पर पड़ती है तथा अपवर्तन के बाद RS दिशा में बाहर निकल जाती है। आपतित किरण PQ को आगे बढ़ाने तथा निर्गत किरण RS को पीछे बढ़ाने पर यह एक-दूसरे को बिन्दु D पर काटती हैं। इस प्रकार आपतित किरण PO तथा निर्गत किरण RS के बीच बने कोण को विचलन कोण कहते हैं तथा अक्षर δ से प्रदर्शित करते हैं। किसी विशेष आपतन कोण के लिए δ का मान न्यूनतम होता है।
इसे अल्पतम विचलन कोण कहते हैं तथा δm से प्रदर्शित करते हैं।
यदि प्रिज्म का कोण A तथा उसका अल्पतम विचलन कोण δm हो तो प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक n निम्न सूत्र से निकाला जा सकता है
(ख) मानव नेत्र के निकट बिन्दु और दूर बिन्दु में विभेद कीजिए।
निकट बिन्दु - वह न्यूनतम दूरी जिस पर रखी कोई वस्तु बिना किसी तनाव के अत्यधिक स्पष्ट देखी जा सकती है, उसे सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी कहते हैं। इसे नेत्र का निकट बिन्दु भी कहते हैं।
दूर बिन्दु - वह दूरतम बिन्दु जिस तक कोई नेत्र वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है, नेत्र का दूर बिन्दु कहलाता है। सामान्य नेत्र के लिए यह अनंत दूरी पर होता है।
(ग) उत्तल लेंस द्वारा प्रतिबिम्ब निर्माण को दर्शाइये जब वस्तु प्रकाशिक केन्द्र व फोकस के मध्य हो।
उत्तर- वस्तु प्रकाशिक केन्द्र तथा फोकस के बीच स्थित है-वस्तु की इस स्थिति में प्रतिबिम्ब लेन्स के उसी ओर, वस्तु के पीछे, आभासी, सीधा तथा वस्तु से बड़ा बनता है।
3. (क) एक व्यक्ति 30 सेमी से अधिक दूर की वस्तुओं को नहीं देख सकता है। यह कौन-सा दृष्टिदोष है? इसके निवारण के लिए प्रयुक्त लेंस की प्रकृति और फोकस दूरी ज्ञात कीजिए।
उत्तर - चूँकि व्यक्ति 30cm से अधिक दूर की वस्तुओं को नहीं देख सकता है इसलिए उसकी आँखों में निकट दृष्टि दोष है। इस दोष को दूर करने के लिए व्यक्ति को अवतल लेंस के चश्मे का प्रयोग करना होगा।
वस्तु की लेंस से दूरी u = ∞
प्रतिबिम्ब की लेंस से दूरी v = - 30 cm
फोकस दूरी f = ?
लेंस सूत्र से,
(1 / f) = (1 / v) - (1 / u)
= 1 / (-30) - 1 / ∞
= 1 / (-30) - 0
= 1 / (-30)
f = -30 cm
अर्थात व्यक्ति को 30 सेमी फोकस दूरी वाले अवतल लेंस के चश्मे की आवश्यकता है।
अथवा
एक प्रकाश की किरण माध्यम-I से चलकर चित्रानुसार माध्यम-II में प्रवेश करती है। कौन-सा माध्यम सघन है? माध्यम-I के सापेक्ष माध्यम II का अपवर्तनांक ज्ञात कीजिए।
उत्तर- चूँकि, आपतन कोण < अपवर्तन कोण
इसलिए माध्यम 1 सघन माध्यम है।
1n2 = Sin i / Sin r
= Sin 30° / Sin 45°
= (1/2) / (1/ √2)
= (1/2) × (√2 / 1)
= 1 / √2
(ख) किसी चालक तार का प्रतिरोध किन-किन कारकों पर निर्भर करता है?
उत्तर- एक निश्चित ताप पर किसी चालक तार का प्रतिरोध तार की लम्बाई, अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल तथा पदार्थ पर निम्न प्रकार निर्भर करता है
(A) किसी तार का प्रतिरोध R उसकी लम्बाई l के अनुक्रमानुपाती होता है,
R ∝ l ......(¡)
(B) किसी तार का प्रतिरोध R उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल A के व्युत्क्रमानुपाती होता है,
R ∝ 1/A .......(¡¡)
(c) समान लम्बाई तथा समान अनुप्रस्थ काट के भिन्न-भिन्न पदार्थों से बने तारों का प्रतिरोध भिन्न-भिन्न होता है।
समीकरण (¡) व (¡¡) से
R ∝ l / A
R = ρ l / A
जहाँ ρ एक नियतांक है, जिसे तार के पदार्थ का विशिष्ट प्रतिरोध कहते हैं। इसका मात्रक Ω मीटर होता है।
अथवा
एक तार से 5 एम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही है। 10 मिनट में तार से कितना आवेश प्रवाहित होगा? तार से प्रति सेकंड प्रवाहित इलेक्ट्रॉनों की संख्या ज्ञात कीजिए।
उत्तर -
धारा (i) = 5 एम्पियर
समय (t) = 10 मिनट
= 10 × 60 सेकेंड
= 600 सेकेंड
आवेश (q) = ?
q = it
= 5 × 600 कूलाम
= 3000 कूलाम
q = ne.
n = q / e
n = 3000 / 1.6 × 10
-19
n = (30000 × 10 19 ) /16
n = (30 × 10 22 ) / 16
n = 1.875 × 10 22
4. प्रत्यावर्ती धारा जनित्र के सिद्धांत, संरचना तथा क्रियाविधि का नामांकित सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर- विद्युत जनित्र का सिद्धान्त विद्युत जनित्र विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है अर्थात् परिवर्तनशील चुम्बकीय क्षेत्र के कारण चालक में विद्युत धारा प्रेरित होती है। फ्लेमिंग के दाएँ हस्त के नियम से प्रेरित धारा की दिशा ज्ञात करते हैं। विद्युत जनित्र में आर्मेचर को शक्तिशाली चुम्बकों के ध्रुवों के बीच घुमाया जाता है जिसके कारण आर्मेचर से गुजरने वाली चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की संख्या में परिवर्तन होता है तथा प्रेरित धारा उत्पन्न होती है।
संरचना -(i) ABCD आर्मेचर अपने अक्ष के चारों तरफ घूर्णनशील होता है।
(ii) आर्मेचर पर अवरोधी ताँबे की तार की लपेटें होती हैं।
(iii) ताँबे की तारों की दो सिरे धातु के बने दो वलय S1 एवं S2 से जुड़े होते हैं। ये दोनों वलय स्थिर दो कार्बन ब्रुशों B1 एवं B2 के सम्पर्क में रहते हैं।
(iv) दोनों ब्रुशों का सम्पर्क गैल्वेनोमीटर (G) से होता है।
कार्यविधि- (i) आर्मेचर को यांत्रिक रूप से दो शक्तिशाली चुम्बकों के ध्रुवों के बीच घुमाया जाता है।
(ii) दो वलय भी घूमते हैं किन्तु दोनों वलय अलग-अलग दोनों कार्बन ब्रुशों के सम्पर्क में रहते हैं।
(iii) गति के समय जब AB भुजा ऊपर एवं CD नीचे की तरफ रहती है, आर्मेचर में धारा की दिशा A से B एवं C से D होती है।
(iv) यदि आर्मेचर की भुजा CD ऊपर एवं AB नीचे हों तो फ्लेमिंग के दाएँ हस्त के नियम से धारा की दिशा D से C एवं B से A की तरफ हो जाती है। इस प्रकार आर्मेचर के एक घूर्णन में धारा की दिशा दो बार परिवर्तित होती है। अतः इस यंत्र द्वारा प्रत्यावर्ती धारा उत्पन्न होती है।
अथवा
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण से क्या तात्पर्य है? फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण संबंधी प्रयोग समझाइये। प्रेरित धारा की दिशा ज्ञात करने वाले नियम लिखिए।
उत्तर- फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण सम्बन्धी निम्न दो नियम हैं
(i) प्रथम नियम- जब किसी बन्द कुण्डली में से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो उस कुण्डली में एक प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है तथा कुण्डली में प्रेरित धारा बहने लगती है। यह धारा केवल तभी तक बहती है जब तक कि चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता रहता है।
(ii) द्वितीय नियम - बन्द कुण्डली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल का मान, चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन की दर के अनुक्रमानुपाती होता है अर्थात्
जहाँ Φ
1 प्रारम्भिक फ्लक्स तथा Φ
2 , t समय बाद का फ्लक्स है (ॠण का चिह्न केवल यह प्रदर्शित करता है कि प्रेरित विद्युत वाहक बल, फ्लक्स परिवर्तन का विरोध करता है)।
प्रयोग द्वारा विद्युत चुम्बकीय प्रेरण का प्रदर्शन - पृथक्कित तारों की एक कुण्डली बनाकर चित्र के अनुसार एक परिपथ तैयार करते हैं।
जब हम एक छड़ चुम्बक के उत्तरी ध्रुव N को कुण्डली की ओर लाते हैं तो धारामापी में एक विक्षेप आता है। धारामापी में यह विक्षेप कुण्डली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल के कारण होता है। जब हम चुम्बक को कुण्डली से दूर ले जाते हैं तो धारामापी में पुनः विक्षेप आता है, लेकिन यह विक्षेप पहले के विपरीत दिशा में होता है।
इसी प्रकार जब हम छड़ चुम्बक के दक्षिणी ध्रुव S को कुण्डली के पास लाते हैं या दूर ले जाते हैं तो प्रत्येक दशा में विक्षेप पहले वाले विक्षेप से विपरीत दिशा में होता है।
उपर्युक्त प्रयोग में धारामापी में विक्षेप केवल तभी तक होता है जब तक कुण्डली तथा चुम्बक में आपेक्षिक गति होती है। दोनों के स्थिर रहने या दोनों के समान वेग से एक ही दिशा में चलने पर धारामापी में कोई विक्षेप नहीं आता है। स्पष्ट है कि सेल न होने पर भी धारामापी में क्षणिक विक्षेप आता है। अतः इस प्रयोग से विद्युत चुम्बकीय प्रेरण का प्रदर्शन होता है। कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल अथवा प्रेरित धारा की दिशा का निर्धारण लेन्ज के नियम (Lenz's Law) द्वारा होता है।