Science Unsolved 2021 Class 10 Science Set 2 (824 HZ) खण्ड क भौतिक विज्ञान

Science Unsolved 2021 
Class 10
Science
Set 2 (824 HZ)

खण्ड क
भौतिक विज्ञान

1. (क) एक दर्पण के सामने रखी वस्तु का प्रतिबिंब आभासी, सीधा व बड़ा बनता है। वह दर्पण कैसा है ?

(i) अवतल 
(ii) उत्तल
(iii) समतल
(iv) इनमें से कोई भी नहीं

उत्तर - (i) अवतल


(ख) काँच के प्रिज्म से जब श्वेत प्रकाश की किरण गुजरती है तो वह अपने अवयवीय रंगों में विभक्त होती है। किस रंग के लिए विचलन सबसे अधिक है?

(i) लाल
 (ii) पीला 
(iii) हरा 
 (iv) बैंगनी

उत्तर - (iv) बैंगनी

(ग) वैद्युत मोटर परिवर्तित करता है

(i) यांत्रिक ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में
(ii) यांत्रिक ऊर्जा को वैद्युत ऊर्जा में
(iii) वैद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में
(iv) रासायनिक ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में

 उत्तर - (iii) वैद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में


(घ) विद्युत विभवान्तर का मात्रक है

(i) एम्पीयर 
(ii) ओम
(iii) वोल्ट 
(iv) वाट

उत्तर - (iii) वोल्ट

2. (क) निर्वात में प्रकाश का वेग 3 x 108 मीटर प्रति सेकण्ड है। एक पदार्थ जिसका अपवर्तनांक 1.5 है, में प्रकाश के वेग की गणना कीजिए।

उत्तर -
 निर्वात में प्रकाश का वेग C = 3 x 108 m/s
अपवर्तनांक n = 1.5 
पदार्थ प्रकाश के वेग v = ?
   n = C / v
   v = C / n
      = (3 x 108 ) / 1.5 
      = (30 × 108 ) / 15
   v = 2 × 108 m/s

(ख) एक अवतल दर्पण जिसकी फोकस दूरी 20 सेण्टीमीटर है, इसके सामने एक वस्तु उससे 60 सेण्टीमीटर की दूरी पर रखी है। वस्तु के प्रतिबिम्ब की स्थिति की गणना कीजिए।

उत्तर - अवतल दर्पण के लिए,
 फोकस दूरी f = - 20 cm
वस्तु की दर्पण से दूरी u = - 60 cm
वस्तु के प्रतिबिम्ब की स्थिति v = ?
दर्पण सूत्र से,
1/v + 1/u = 1/f
1/v = 1/f - 1/u
   = 1/(-20) - 1/(-60)
   = -1/20 + 1/60
   = (-3 +1)/60
   = (-2)/60
   = -1 / 30
 v = - 30 cm

(ग) गणना करके बताइए कि 1 किलोवाट घंटा (1 kWh) ऊर्जा का मान जूल में क्या होगा।

उत्तर -  1 किलोवाट घंटा = 1 × 1000 × 60 × 60 जूल
 = 3600000 जूल
 = 3.6 × 106 जूल

 3. (क) निकट दृष्टि दोष से पीड़ित एक व्यक्ति अधिक से अधिक 5 मीटर की दूरी तक देख सकता है। सही दृष्टि के लिए उसे किस फोकस दूरी के लेंस की आवश्यकता होगी?

उत्तर-  निकट दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति के सामने वस्तु अनंत पर होनी चाहिए
u = - ∞
v = - 5 m
लेंस सूत्र का उपयोग,
1/f = 1/v - 1/u
      = 1/(-5) - 1/ (-∞)
      = -1/5 - 0
(चूंकि 1/∞ = 0)
1/f  = -1/5
f = -5 m
अतः उस व्यक्ति को 5 m फोकस दूरी के अवतल लेंस की आवश्यकता है।

अथवा

दूर दृष्टि दोष से आप क्या समझते हैं? इस दोष का निवारण कैसे किया जाता है?

उत्तर -  जब मनुष्य को दूर की वस्तुएँ तो स्पष्ट दिखाई देती है परंतु पास की वस्तुए स्पष्ट नहीं दिखाई देती इसे दूर दृष्टि दोष कहते है।
दूर दृष्टि दोष के कारणः यह रोग निम्न में से एक कारण से हो सकता है।
(1) लेंस से रेटिना की दूरी कम हो जाए अर्थात् नेत्र के गोले की त्रिज्या कम हो जाए।
(2) लेंस के पृष्ठो की वक्रता कम हो अर्थात् लेंस पतला हो जाए जिससे उसकी फोकस दूरी बढ़ जाए।

निवारणः- इस दोष में लेंस की फोकस दूरी अधिक हो जाती है। जिससे लेंस की अभिसारी क्षमता कम हो जाती है। अतः इस दोष के निवारण के लिए ऐसा लेंस प्रयुक्त करना चाहिए जो नेत्र की अभिसारी क्षमता को बढ़ा दे अर्थात् उत्तल लेंस प्रयुक्त किया जाता है।

(ख) एक विद्युत हीटर पर 250 वोल्ट व 2.0 किलोवाट लिखा है। पूरी क्षमता से कार्य करने पर इससे कितनी विद्युत धारा प्रवाहित होगी? इसे प्रतिदिन 10 घंटे कार्य करते रहने पर 30 दिन में कितनी kWh (किलोवाट घंटा) ऊर्जा व्यय होगी? 

उत्तर - विद्युत हीटर का,
विभवांतर V = 250 वोल्ट
क्षमता P = 2 किलोवाट
             = 2000 वाट

P = Vi
i = P / V
  = 2000/250
  = 8 एम्पियर

क्षमता P = 2 किलोवाट
             = 2000 वाट
घंटे = 10 घंटे
दिन = 30 दिन

यूनिटों की संख्या = (वाट × घंटे × दिन) / 1000

 = (2000 × 10 × 30 )/ 1000
 = 600 यूनिट

अथवा

समरूप चुम्बकीय क्षेत्र में किसी धारावाही चालक पर लगने वाले बल की व्याख्या कीजिए। चालक पर लगने वाले बल की दिशा किस नियम से ज्ञात की जाती है? स्पष्ट एवं सचित्र उल्लेख कीजिए।

उत्तर- यदि एक वाह्य चुम्बकीय क्षेत्र B में, चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा से θ कोण पर स्थित l लम्बाई के चालक विद्युत धारा प्रवाहित हो रही हो तो उस पर कार्य करने वाला बल F
 (i) चुम्बकीय क्षेत्र B के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात
       F ∝ B                                ...(i) 
(ii) चालक में प्रवाहित धारा के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात 
       F ∝ i                                 ...(ii) 

(iii) चालक की लम्बाई l के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात
     F ∝ l                               ...(iii)
(iv) चालक तथा चुम्बकीय क्षेत्र के बीच बने कोण की ज्या (sine) के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात
    F ∝ Sin θ                          ...(iv)
सभी को मिलाने पर,
    F ∝ Bil Sin θ  
    F = KBil Sin θ    
जहाँ K एक नियतांक है। SI प्रणाली में B का मात्रक इस प्रकार लेते हैं कि K = 1, तो 
F = iBl Sin θ    

चालक पर लगने वाला बल फ्लेमिंग के बाएं हाथ के नियम से ज्ञात की जाती है।

फ्लेमिंग के बाएँ हाथ का नियम (Fleming's left hand rule)- 
यदि हम अपने बाएँ हाथ के अंगूठे तथा अंगूठे के पास वाली दोनों अंगुलियों (तर्जनी तथा मध्यमा) को इस प्रकार फैलाएँ कि तीनों परस्पर लम्बवत रहें तब यदि पहली अंगुली चुम्बकीय क्षेत्र (B) की दिशा और बीच वाली अंगुली (मध्यमा) धारा i की दिशा प्रदर्शित करती है तो अँगूठा चालक पर लगने वाले बल F की दिशा को प्रदर्शित करेगा।

4. ्रदत्त विद्युत परिपथ में प्रत्येक प्रतिरोधक R1, R2, R3, R4, R5, R6, R7, R8 R9  में बहने वाली विद्युत धारा व प्रत्येक प्रतिरोधक के सिरों के बीच उत्पन्न विभवान्तर की गणना कीजिए। यहाँ R1 = 1 Ω, R2 = R3 = R4 = 3 Ω R5 = R6 = R7 = R8 = R9 = 5 Ω 
उत्तर-  चूँकि R2, R3 व R4 समान्तर क्रम में हैं इस लिए इनका तुल्य प्रतिरोध
1/R' = 1/R2 + 1/R3 + 1/R4
        = 1/3 + 1/3 + 1/3
        = (1 + 1 + 1) / 3
        = 3/3
        = 1Ω
इसी प्रकार से R5, R6, R7, R8  R9 भी समान्तर क्रम में हैं इसलिए इनका तुल्य प्रतिरोध
1/R'' = 1/R5 + 1/R6 + 1/R7 + 1/R8 + 1/R9
         = 1/5 + 1/5 + 1/5 + 1/5 + 1/5
         = ( 1 + 1 + 1 + 1 + 1)  / 5
         = 5/5
         = 1Ω
अब परिपथ का तुल्य प्रतिरोध
R = 1Ω + 1Ω + 1Ω
    = 3Ω
अब ,
विभवांतर V = 4.5 वोल्ट
प्रतिरोध R = 3Ω
V = iR
i = V / R
  = 4.5 / 3
  = 1.5 एम्पियर

अब यही धारा पूरे परिपथ में बहेगी। तो
R1 के विभवांतर के लिए,
 प्रतिरोध R1 = 1Ω
 धारा i = 1.5 एम्पियर
V = iR
V1 = 1.5 × 1
      = 1.5 वोल्ट

R2, R3 व R4 के विभवांतर के लिए,
 तुल्य प्रतिरोध R1 = 1Ω
 धारा i = 1.5 एम्पियर
V = iR
V1 = 1.5 × 1
      = 1.5 वोल्ट
चूँकि सभी श्रेणी क्रम में है तो सभी विभवांतर सामान होगा। इसलिए V2 = V3 = V4 = 1.5 वोल्ट

R5, R6, R7, R8  R9 के विभवांतर के लिए,
 तुल्य प्रतिरोध R1 = 1Ω
 धारा i = 1.5 एम्पियर
V = iR
V1 = 1.5 × 1
      = 1.5 वोल्ट
चूँकि सभी श्रेणी क्रम में है तो सभी विभवांतर सामान होगा। इसलिए V5 = V6 = V7 = V8 = V9 = 1.5 वोल्ट

अथवा

विद्युत धारा जनित्र किस सिद्धान्त पर कार्य करता है? नामांकित चित्र बनाकर इसकी कार्यविधि समझाइए।

उत्तर - विद्युत् जनित्र एक प्रकार का यंत्र है जो यांत्रिक ऊर्जा को प्रत्यावर्तित विद्युत् धारा में परिवर्तित करता है।

सिद्धांत : प्रत्यावर्तित विद्युत् जनित्र विद्युतचुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है। जब एक कुंडली समानांतर चुंबकीय क्षेत्र में घूर्णन करती है, तो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं कुंडली से गुजरती हैं और विद्युत् प्रेरित करती हैं और इसमें विद्युत् स्थापित करती हैं।

रचना : इसके मुख्य भाग निम्नलिखित हैं
 1. चुंबक: एक शक्तिशाली अवतल बेलनाकार चुंबक जैसे नाल चुंबक का कार्य है शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र बनाना।

2. कुंडली: एक आयताकार लोहे के टुकड़े पर तांबे की तार लपेटकर उसे कुंडली का रूप दिया जाता है। जिसमें विद्युत् धारा प्रवाह की जाती है और इसे चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है जिससे इस पर बल लगता है और ये अपने अक्ष पर घूमता है। चित्र में ABCD कुंडली को दर्शाया गया है।

3. विभक्त वलय: यह अर्धगोल छल्ले होते हैं। ये कुंडली के दोनों सिरों से परस्पर जुड़े होते हैं और कुंडली के अर्ध घूर्णन के साथ ये भी घूर्णन करती हैं। चित्र में इन्हें S1 और S2 से दर्शाया गया है।

4. ब्रुश: B1 और B2 दो कार्बन या लचीले धातु की छड़ें हैं जो अर्धगोल छल्लों से परस्पर जुड़े होते हैं और इनका काम विद्युत् धारा को लोड तक ले जाना है। चित्र में इन्हें गैल्वेनोमीटर से जोड़ा गया है जो विद्युत् धारा को मापता है।
कार्यविधि : प्रारम्भ में ABCD स्थिति में कुण्डली चुम्बकीय बल रेखाओं के समान्तर है। जब कुण्डली को इस प्रकार घुमाया जाता है कि AB भाग ऊपर की ओर और CD भाग नीचे की ओर जाता है तो कुण्डली में से जाने वाले फ्लक्स में वृद्धि होती है फलतः कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है। फ्लेमिंग के दाएँ हाथ के नियमानुसार कुण्डली में प्रेरित धारा B से A की ओर तथा D से C की ओर बहती है। जब कुण्डली लम्बवत हो जाती है तो विद्युत वाहक बल अधिकतम हो जाता है। इस स्थिति तक आने में कुण्डली 0° से 90° तक घूम चुकी होती है। 90° से 180° तक कुण्डली घूमने पर फ्लक्स में कमी होती है और 180° पर पहुँचकर विद्युत वाहक बल शून्य हो जाता है। 180° से 270° तक कुण्डली घूमने पर फ्लक्स में वृद्धि विपरीत दिशा में होती है। 270° पर विद्युत वाहक बल विपरीत दिशा में अधिकतम हो जाता है। 270° से 360° की ओर कुण्डली घूमने पर विद्युत वाहक बल घटता है और 360° पर यह पुनः शून्य हो जाता है। इस प्रकार कुण्डली में एक पूर्ण चक्कर में दो बार विद्युत वाहक वल अधिकतम किन्तु विपरीत दिशाओं में होता है और दो बार शून्य होता है। इस प्रकार आर्मेचर के निरन्तर घूमते रहने से कुण्डली से बाह्य परिपथ में धारा बहने लगती है। धारा की दिशा बदलती रहने के कारण, इसे प्रत्यावर्ती धारा डायनमो (जनित्र) कहा जाता है।

1 टिप्पणी: